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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी

शिकार मुंशी प्रेम चंद

वसुधा बड़ी देर तक बैठी उदास आँखो से यह दृश्य देखती रही। फिर टेलीफोन पर आकर उसने रियासत के मैनेजर से पूछा, "कुँवर साहब का कोई पत्र आया ?"
फोन ने जवाब दिया, "ज़ी हाँ, अभी खत आया है। कुँवर साहब ने एक बहुत बड़े शेर को मारा है।"
वसुधा ने जलकर कहा, "मैं यह नहीं पूछती ! आने को कब लिखा है ?"
“आने के बारे में तो कुछ नहीं लिखा।”
“यहाँ से उनका पड़ाव कितनी दूर है ?”
“यहाँ से ! दो सौ मील से कम न होगा। पीलीभीत के जंगलों में शिकार हो रहा है।”
“मेरे लिए दो मोटरों का इन्तजाम कर दीजिए। मैं आज वहाँ जाना चाहती हूँ।”
फोन ने कई मिनट बाद जवाब दिया, " एक मोटर तो वह साथ ले गये हैं। एक हाकिम जिला के बंगले पर भेज दी गयी, तीसरी बैंक के मैनेजर
की सवारी में, चौथी की मरम्मत हो रही है।"
वसुधा का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा। बोली, "क़िसके हुक्म से बैंक के मैनेजर और हाकिम जिला को मोटरें भेजी गयीं ? आप दोनों मँगवा
लीजिए। मैं आज जरूर जाऊँगी।"
'उन दोनों साहबों के पास हमेशा मोटरें भेजी जाती रही हैं; इसलिए मैंने भेज दीं। अब आप हुक्म दे रही हैं, तो मँगवा लूँगा !'
वसुधा ने फोन से आकर सफर का सामान ठीक करना शुरू किया। उसने उसी आवेश में आकर अपना भाग्य-निर्णय करने का निश्चय कर लिया था। परित्यक्ता की भाँति पड़ी रहकर जीवन को समाप्त न करना चाहती थी। वह जाकर कुँवर साहब से कहेगी अगर आप समझते हैं कि मैं आपकी सम्पत्ति की लौंडी बनकर रहूँ, तो यह मुझसे न होगा। आपकी सम्पत्ति आपको मुबारक हो। मेरा अधिकार आपकी सम्पत्ति पर नहीं, आपके ऊपर है। अगर आप मुझसे जौ-भर हटना चाहते हैं, तो मैं आपसे हाथ-भर हट जाऊँगी ! इस तरह की और कितनी ही विराग-भरी बातें उसके मन में बगूलों की भाँति उठ रही थीं। डाक्टर साहब ने द्वार पर आकर पुकारा, " मैं अन्दर आऊँ ?"
वसुधा ने नम्रता से कहा, "आज क्षमा कीजिए, मैं जरा पीलीभीत जा रही हूँ।"
डाक्टर ने आश्चर्य से कहा, "आप पीलीभीत जा रही हैं ! आपका ज्वर चढ़ जायगा। इस दशा में मैं आपको जाने की सलाह न दूँगा।"
वसुधा ने विरक्त स्वर में कहा, " बढ़ जायगा, बढ़ जाय; मुझे इसकी चिन्ता नहीं है ! वृद्ध डाक्टर परदा उठाकर आ गया और वसुधा के चेहरे की ओर ताकता हुआ बोला लाइए मैं टेम्परेचर ले लूँ। अगर टेम्परेचर बढ़ा होगा, तो मैं आपको हरगिज न जाने दूँगा। 'टेम्परेचर लेने की जरूरत नहीं। मेरा इरादा पक्का हो गया है।'
'स्वास्थ्य पर ध्यान रखना आपका पहला कर्तव्य है।'
वसुधा ने मुस्कराकर कहा, "आप निश्चिन्त रहिए, मैं इतनी जल्द मरी नहीं जा रही हूँ ! फिर अगर किसी बीमारी की दवा मौत ही हो, तो आप क्या करेंगे ?"
डाक्टर ने दो-एक बार आग्रह किया फिर विस्मय से सिर हिलाता चला गया !

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